By Yash Sadhak Shrivastava
इंदौर, मध्य प्रदेश - वायु प्रदूषण सभी प्रकारों में से सबसे खतरनाक प्रदूषण माना जाता है। यह न सिर्फ पर्यावरण, प्रकृति को नुकसान पहुँचाता है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों, मनुष्य, पेड़–पौधों, जानवरों, पक्षु–पक्षियों, वायु और जल सभी को एक साथ बुरी तरह प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण मानव जीवन पर कई प्रकार से दुष्प्रभाव छोड़ता है।
ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहाँ वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से 6 गुना तक अधिक है। अनुमान है कि वायु प्रदूषण हर साल 42 लाख लोगों की जान खतरे में डाल रहा है। वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों और बीमारियों में सबसे ज़्यादा अस्थमा, स्ट्रोक, मस्तिष्क संबंधी समस्याएँ, फेफड़ों के संक्रमण और कैंसर शामिल हैं।
देश के सबसे स्वच्छ शहर में भी बढ़ती चिंता
इंदौर को लगातार भारत का सबसे स्वच्छ शहर माना गया है, लेकिन वायु प्रदूषण यहां भी तेजी से चुनौती बनता जा रहा है। इसी मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने और समाधान तलाशने के लिए अर्थ जर्नलिज़्म नेटवर्क (EJN) और क्लीन एयर कैटेलिस्ट की ओर से इंदौर में तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई।
इस कार्यशाला में मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए पत्रकारों ने हिस्सा लिया। प्रतिभागियों ने WRI (वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट), वाइटल स्ट्रैटेजीज़, पर्यावरण वैज्ञानिकों और सरकारी अधिकारियों से बातचीत कर वायु प्रदूषण की जमीनी चुनौतियों और नीतिगत पहलुओं को समझा।
कार्यशाला के दौरान पत्रकारों को पिथमपुर औद्योगिक क्षेत्र का भ्रमण भी कराया गया, जहाँ उन्होंने प्रभावित स्थानीय लोगों से मिलकर औद्योगिक प्रदूषण के वास्तविक असर को करीब से देखा।
बच्चों पर पड़ रहा असर
डब्लू एच् ओ के आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में 15 साल से कम उम्र के 93 प्रतिशत बच्चे ऐसी हवा में साँस ले रहे हैं जिसमें विषाक्त पदार्थ मौजूद हैं। हर साल 6 लाख से अधिक बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण यही है। शोध बताते हैं कि बचपन में वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और विकास संबंधी बाधाओं का खतरा बढ़ा देता है। यहां तक कि गर्भ में पल रहे शिशु पर भी इसका असर पड़ता है।
महिलाओं को होती हैं ये गंभीर परेशानियाँ
शोध बताते हैं कि वायु प्रदूषण वाली जगहों पर रह रहीं महिलाओं में मानसिक तनाव, हार्मोनल गड़बड़ियों और शारीरिक बीमारियों का खतरा अधिक पाया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण का सबसे बुरा प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर होता है - समय से पहले प्रसव, भ्रूण का कम वजन और एनीमिया जैसी समस्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चूल्हों और पराली के धुएँ से स्थिति और गंभीर हो जाती है।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि पेड़–पौधों का रोपण, कचरे का उचित निस्तारण, जल–स्रोतों की सफाई, स्वच्छ ईंधन का उपयोग और सामुदायिक जागरूकता बढ़ाकर वायु प्रदूषण के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।